Nios Deled course 510 Assignment 1 Question 1 With Answer

Last updated on April 29th, 2019 at 12:30 pm

Nios Deled course 510 Assignment 1 Question 1 With Answer – अनुभववाद , संदेहवाद , तार्कनावाद में उपयुक्त उदाहरणों सहित अंतर स्पष्ट कीजिए |
इस पोस्ट में Nios Deled course 510 Assignment 1 के पहले प्रश्न का उत्तर लाया हूँ   इसे आप असाइनमेंट कॉपी में  सकते हैं | इस प्रश्न के उत्तर मैं स्वयं के ज्ञान और सोंच    आधार पर लिखा हूँ    कोई गलतियाँ दिखें तो सुधार या बदलाव कर सकते हैं |

Nios Deled course 510 Assignment 1 Question 1 With Answer

Nios Deled course 510 Assignment 1 के पहले प्रश् का उत्तर |

Q. 1) अनुभववाद , संदेहवाद , तार्कनावाद में उपयुक्त उदाहरणों सहित अंतर स्पष्ट कीजिए |
उत्तर :- अनुभववाद , संदेहवाद , तार्कनावाद में अंतर उदाहरण सहित निम्न प्रकार हैं |
अनुभववाद :-  अनुभववाद इस सिद्धांत पर आधारित हैं की ज्ञानेन्द्रियों द्वारा एकत्रित अनुभवों और प्रमाणों से उत्पन्न होता हैं | इसके मुख्य समर्थक थे जाँन लैक , जार्ज बर्कले और डेविड हम | वैज्ञानिक प्रयोग में अनुभाविक का तात्पर्य हैं ज्ञान्निन्द्रियों का या अन्शाकित व्यज्ञानिक यंत्रो का प्रयोग से एकत्र किये गए प्रमाण व आंकड़े | अनुभाविक प्रमाणों के कई उदाहरण हैं | डार्विन ने अवलोकनों के आधार पर ही प्राकृतिक वरण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया , मार्क ने प्रयोग के अनुप्रयोग का सिद्धांत सामने रखा | मनुष्य द्वारा छोड़ी गई कार्बन डाई आक्साइड से सार्वत्रिक तपन का सिधांत भी अवलोकन के अधर पर एकत्रित प्रमाणों के आधार पर आधारित थे |

उदाहरण :-

सूर्य और चन्द्र गरहन , पृथ्वी सूर्य के गिर्द घुमती हैं आदि | अनुभववाद बुद्धिवाद से उल्टा हैं | क्यूंकि इसमे अंदरूनी विचारो की कोई जगह नहीं हैं |

संदेहवाद :-

वैज्ञानिक संदेहवाद उन दावों की सच्चाई पर प्रश्न चिन्ह लगता हैं जिनका कोई अनुभाविक प्रमाण नहीं होता या जिनकी पुन: प्रस्तुतीकरण योग्यता नहीं हैं जो जो ‘सत्यापित ज्ञान के विस्तार’ हेतु एक विधिवत मापदंड का भाग हैं | राबर्ट के. मर्टन जोर देकर कहते हैं की सभी विचारो का परीक्षण जरुरी हैं और उन सब की सख्त और सुव्यवस्थित ढंग से सामुदायिक जाँच होनी चाहिए | हमे प्रश्न पूछने चाहिए , शक करना चाहिए  और निर्णय को रोक कर रखना चाहिए जबतक की प्रयाप्त सुचना उपलब्ध न हो | संदेहवाद निष्कर्ष निकलने से पहले प्रमाण मांगता हैं | हमे सोंच विचार करके प्रमाण एकत्रित करना चाहिए | और प्रमाणों के सहारे न की पक्षपात , तरफदारी या अविवेकपूर्ण सोंच के सहारे आगे बढ़ना चाहिए |
इतिहास के पुस्तकों में जो विज्ञानं लिखा है वह विशिष्ट रूप से बड़ी – बड़ी खोजो व सिद्धांतो के बारे में हैं | परन्तु उतना ही महत्वपूर्ण लेकिन कम आकर्षक भाग हैं संदेहवाद का विज्ञानं | विज्ञानं की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता हैं | नयी खोजो की एनी अव श्याक्ताओ द्व आरा फिर से प्रमाणित करने की क्षमता | यह गलत सिद्धांतो को व्यापक रूपसे स्वीकृत देने से रोकती हैं | ऐसा लगता हैं की विज्ञानं संदेहवाद कार्ल सगंन के कार्य से आरंभ हुआ |
पंजाब बैंक में लोन के लिए ऑनलाइन अप्लाई कैसे करे
संदेहवाद असामान्य दावों को अपने आप से प्राथमिकता के अधर पर स्वीकार करने पर जोर नहीं डालता | यह असाधारण व असंगत घटनाओ के दावों को सूक्ष्म रूप से परीक्षण करने के लिए बहस करता हैं | यह कहता है की असाधारण दावों को वैध स्थापित करने के लिए असाधारण प्रमाणों की आवश्यकता होती हैं | संदेहवाद व्यज्ञानिक विधि का एक भाग हैं |

उदाहरण :-

  • प्रायोगिक निष्कर्ष को एक स्थापित इकाई नही मन जाता और यह ‘ अपने आप में दोहरे ज्जानेवाली ‘ मणि जाती हैं |
  • गेलिलियो ने ने अरस्तु के सिद्धांत को सूक्ष्म रूप से स्थापित किया और दावा किया की अरस्तु के सोंच के विपरीत पृथ्वी पर सामान दुरी से गिरने वाली हलकी एवं भरी वस्तुएं धरातल पर आने के लिए समान समय लेती हैं | ज्ञ्रुत्व भरी व हलकी वस्तुओं को सामान बल से खींचता हैं | अरस्तु के सिद्धांत के अनुसार व्यज्ञानिक के मन्ना था की भरी वस्तुएं पहले कीरति हैं और हल्की बाद में | गेलेलियो अपने समय का महान संदेहवादी था |

तर्कणावाद :-

यह ऐसी सोंच है जिसकी सत्य की कसौटी संवेदी नही बल्कि बौद्धिक और निगमनात्मक हैं | विवेक बुद्धि ज्ञान का सबसे अलग रास्ता हैं | बुद्धिवाद को अनुभववाद का उलट मन जाता हैं | मोटे तौर पर एक दार्शनिक बुद्धिवादी भी हो सकता और अनुभववादी भी | विश्व को समझने के लिए मनुष्य को स्वयं को समझना आवश्यक हैं और उसके लिए विवेकपूर्ण सोच ही एकमात्र रास्ता हैं | इस बात का अर्थ जानने से पहले हमे ग्रीक लोगो की समझ की प्रसंसा करनी होगी | मनुष्य दो भागो का बना हैं | एक तो अविवेकपूर्ण भाग जो भावनाओं और इक्षाओं का हैं और दूसरा विवेकपूर्ण भाग , जो वह वास्तव में हैं |  प्रतिदिन अविवेकपूर्ण भाव इक्षाओं के रस्ते हमारे भौतिक शरीर में प्रवेश करते हैं जिससे हमारी विश्व की अनुभूति ज्ञानेन्द्रियो द्वारा सुचना तक ही सिमित रहती हैं |
विवेकपूर्ण भाग हमारी जानकारी से दूर हैं | दार्शनिकों का कार्य हैं भावों का शुद्धिकरण व उन्हें अविवेकपूर्ण भावों से  मुक्त करना | इसीलिए सम्पूर्ण व्यक्तित्व क्व विकास के लिए नैतिक विकास और विवेकपूर्ण भावों से जुड़ना आवश्यक हैं | सोक्रेट्स ने न तो अपना विचार लिखें न कुछ प्रकाशित किया | इमेनुएल कान्त ने अनुभववादियो से कहा है की जहाँ यह सही है की मानव ज्ञान के लिए अनुभव मूलरूप से आवश्यक हैं , वही तर्क अनुभवों को बंधकर एक सुसंगत सोच बानाने में सहायता करता हैं |

उदाहरण :-

  • कोई सतह जो लाल हैं , रंगीन हैं |
  • यदि ए बी से बड़ा है और बी सी से बड़ा है तो ए सी से बड़ा है | दावा यह है की एक बार यह कथन समझ आये तो भी संवेदी अनुभव की जरुरत नहीं है की देखें वे सत्य हैं |
———————-*———————-*——————————
Nios Deled course 510 Assignment 1 Question 1 With Answer

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top