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Deled course 502 Hindi assignment 3 last question solved 1000 word

Last Updated on 4 वर्ष by Abhishek Kumar

Hindi assignment :
मान लीजिए की आपकी कक्षा में कुछ विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे है |
ऐसे बच्चो को सिखाने के मददगार के रूप में किस प्रकार सहायता करेंगे ? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए Hindi assignment पोस्ट पढ़िए |

हमने पिछले पोस्ट में Hindi assignment 501 का सभी question का उत्तर पब्लिश कर दिया है |
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इस लेख में 502 का असाइनमेंट 3 का उत्तर
1000 word में अपने थिंकिंग और ज्ञान के द्वारा लिख रहा हूँ |
हो सकता है | आपके सोचने का तरीका अलग है |
इसीलिए इस उत्तर में बदलाव कर सकते है या खुद से लिखिए !

⇒ Deled course 502 Hindi assignment 3 last question solved 1000 word

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Q. 1 ) मान लीजिए की आपकी कक्षा में कुछ विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे है |
ऐसे बच्चो को सिखाने के मददगार के रूप में किस प्रकार सहायता करेंगे ?
प्रारंभिक स्तर पर समानता के मुददे का महत्वपूर्ण अंग एक जैसा समूह है | जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चे से बनता है | विद्यालय में जाने के बाद कई बार अक्षमता वाले बच्चे देखने को मिला है | परन्तु इस तरह के बच्चे बहुत कम ही देखने को मिलते है |  जैसे – अक्षमता , सुनने , देखने की अक्षमता , बौधिक क्रिया का निम्न स्तर तथा अपनाने के व्यवहार में कमी आदि | विद्यालय में सभी बच्चो के साथ – साथ इन बच्चे को संभालना होता है | ताकि बच्चे के अधिगम तथा निष्पति में सुधार हो सके | कक्षा में अध्यापक को सभी बच्चे की तरह अक्षमता वाले बच्चे पर अलग से ध्यान देना चाहिए | कभी – कभी इस तरह के बच्चे दुसरो को देखकर खुद को असमर्थ महसूस करते है | उन्हें लगता है की मै उन सभी के जैसा नही हूँ | जो कक्षा में पढ़ते है |इसीलिए विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चो को एक्स्ट्रा समय देकर अलग तरीका से पढाई करवाना चाहिए | इस तरह के बच्चे को समझाने के लिए अध्यापक को मिलकर कुछ अलग तरीका से पहचान करके पढ़ाना चाहिए | विशेष आवश्यकता वाले बच्चे को पढ़ाने के लिए उनके श्रेणी तथा पहचान के बारे में जानना जरुरी है

विशेष आवश्यकता वाले बच्चे की श्रेणी तथा पहचान

1.  शारीरिक बाधित :- जिस किसी कक्षा में अक्षमता वाले बच्चे रहेंगे | वैसे बच्चे का जैसे – हाथ पैर , गर्दन , कमर तथा अनुलियाँ उन्हें बैठने में , आस – पास मुड़ने में , वस्तुओ को उठाने में तथा घुमाने में कठिनाई महसूस करती / करता है | यानि की इस तरह के बच्चे के कोई अंग खराब होते है |
2.  दृष्टि बाधित :- अवलोकनीय आँखों की आवृति : आँखों को जल्दी – जल्दी मसलना , आँखों का सीधा लाल होना , एक आँख बंद कर हाथ को आगे मोड़ना | वस्तुए उठाने में आँख बंद करना , स्याम पट से लिखित नोट्स उतरने में दुसरे बच्चो से मदद मांगता है | जल्दी – जल्दी पलक झपकाता है | आँखों में पानी , सर दर्द का सिकायत करता है | तथा आखे बंद करता है | लोगो या वस्तुओ के ऊपर गिर पड़ता है |
3.  श्रवन एवं वाणी बाधित :- सुनने तथा बोलने अवलोकनीय कानो की विकृति : कान / कानो से लगतार बहना , जल्दी – जल्दी कान दर्द का सिकायत करना , प्राय : कान कुरदेना | ठीक से सुनने के लिए सर को एक तरफ मोड़ना | अधिकांश समय शिक्षक के कथन को दोहराने का अनुरोध करना | , श्रुतलेख में कई गलतियाँ करना , शिक्षक को सुनते समय उनके मुख को सावधानी से देखना | तथा बोलने में कठिनाई प्रदर्शित करना |
4.  अधिगम अक्षमता :- अधिगम अक्षमता निम्न शैक्षिक संप्राप्ति का प्रदर्शन , थोड़े से समय के बाद अधिगम को भूल जाना , कक्षा में असावधान तथा विकसित , अमूर्त वस्तुओ पर निर्भर रहना , निम्न स्व कल्पना , आत्म विश्वास में कमी , पुनरावृति तथा अभ्यास  की चाहत , जब बच्चे से कुछ कहा जाये तो उसे यह बताने में कठिनाई होती है की उससे क्या पूछा गया है | वह नीरस तथा धीमी तरीके से कार्य करता है | कार्य करने के अधिगम कठिनाई , अमूर्त वस्तुओ को समझाने में कठिनाई , अमूर्त उदाह्र्नो में अति निर्भरता |विशेष आवश्यकता वाले बच्चो को सँभालने में सर्व प्रथम कदम उनके ठीक प्रकार से उनकी अक्षमता के अंश से पहचान करना है | शिक्षक को ऐसे बच्चो के समस्याओ को उपयुक्त चिकित्सीय जाँच , परीक्षा तथा उनके व्यवहार की विशेषताओ के अवलोकन द्वारा खोजना है |एक बार इन बच्चो के पहचान हो जाये तो उन्हें उपयुक्त व्यक्तियों समस्याओ के पास उनकी अक्षमताओ के देखभाल हेतु भेजा जाता है | श्रवन सम्बन्धी कठिनाई वाले बच्चो को चिकित्सा के आवश्कता हो या कुछ श्रवन सम्बन्धी समस्या वाले बच्चो की एक लैश या बड़ा दिखने वाले शीशे की जरुरत हो |

ऐसे बच्चे को सिखने के मददगार के रूप में सहायता किया जा सकता है | 

अन्य बच्चो के भाती इन बच्चो के लिए भि पाठ्यक्रम पहुच के भीतर हो |
इस उदेश्य को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम तथा कक्षा – शिक्षण में समायोजन द्वारा सुधारात्मक उपाय किये जाते है |
ऐसे बच्चो को अधिगम के बढ़ावा देने के लिए विद्यालय तथा कक्षा में कुछ प्रावधान किये जा सकते है |
1.  लोकोमोटर विकलांग बच्चे → इस तरह के बच्चो के पास उसी तरह के अधिगम      क्षमता होती है | जैसे की अन्य बच्चो में | परन्तु इनमेहिगम क्रियायो को सिखने में कुछ क्रियाये हो सकती है | इस बच्चे में समजोजन सम्बन्धी समस्याए विकसित हो जाती  है |अध्यापक को ऐसे बच्चा को कक्षा    में स्वीकार नही चाहिए जो इन   सभी बच्चे पर अवलोचनात्मक टिपणी करे | कक्षा के सभी अधिगम क्रियाओ को   इन बच्चे को दुसरे के सामान भाग लेने हेतु शामिल किया जाये | यह सुनिश्चित किया जाये की खेल , शारीरिक क्रियाए तथा मनोरंजनात्मक क्रियायो में इन बच्चो को कार्य करने की क्षमता  के स्तर  आधार पर उन्हें भाग लेने हेतु प्रयाप्त    अवसर मिलना चाहिए |
२. दृष्टि दोष वाले बच्चे → इस तरह के बच्चो को     आसानी से पहचाना जा सकता है | कुछ बच्चे अंसिक रूप से दृष्टि दोष युक्त होते है | इन बच्चो के  दृष्टि को लेंश के   द्वारा दूर कियाकता है |
ऐसे बच्चे को कक्षा के आगे के पांति में बैठाए ताकि वे आसानी से स्याम पट को देख सके | आपको स्याम पट पर बड़े अक्षरों में लिखने तथा जो आप स्याम पट पर लिख रहे है | उसे जोर से पढने की आवश्यकता है | दृष्टि दोष समस्या वाले बच्चो पर पढने का बोझ कम करने हेतु उन्हें समझने के साथ सुनने में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए  | शरीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में भाग लेने का अवसर उन्हें देने की आवश्यकता है | आशिक दृष्टि दोष वाले बच्चे के लिए एक पुस्तक स्टैंड की आवश्यकता हो सकती है |
3.  श्रवन तथा वाणी दोष वाले बच्चे → श्रवन संशय वाले बच्चो के पांति में     बैठना चाहिए | ताकि जो आप बोले वे आसानी से समझ सके | जब अध्यापक कक्षा में बोले तो आपको एक उपयुक्त स्तर का स्वर रखे | बुदबुदाना तथा तीब्र गति से न बोले | जब आप पाठ्यपुस्तक को पढ़े | तो यह सुनिश्चित करे की आपके होठो की गति ऐसे बच्चो को दिखाई दे ताकि वे सुनने के किर्या को होठो को पढने द्वारा संपूरक बना दे | संगी साथियों को इन बच्चो के साथ अंतक्रिया हेतु प्रोत्साहित करे | तथा सुनने में एक दुसरे को सहायता करे |
4.  अधिगम क्षमता वाले बच्चे →
इस तरह के बच्चो को अधिक अमूर्त अनुभव प्रदान करने की आवश्यकता है |
यह अनुभव उपलब्ध मानक या बनाई गयी सामग्री के द्वारा प्रदान किये जा सकते है |
स्थानीय वातावरण से सीधे अनुभव प्राप्त करने हेतु क्षेत्रीय भ्रमण का आयोजन किया जा सकता है |
इन बच्चे को अन्य बच्चे के सामान तुलना में अधिक पुनरावर्ती तथा अभ्यास की आवश्यकता होती है |
अधिगम कार्य को छोटे – छोटे टुकड़ो में बटने की आवश्यकता है |
तथा अधिगम के महत्वपूर्ण विन्दुओ पर उनके ध्यान को विशेष रूप से आकर्षित करने की आवश्यकता है |
क्यूंकि इनका ध्यान समय बहुत कम होता है |
मौखिक रूप से सामग्री द्वारा तुरंत पुर्नबलन इन बच्चो के लिए प्रेरणादायक होता है |
सामाजिक स्थितियों में इन बच्चो को सम्प्रेषण कौशलो के आवश्यकता होता है |

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