Deled course 502 assignment

Deled course 502 assignment 1 question 2 with answer

Last Updated on 4 वर्ष by Abhishek Kumar

Deled course 502 assignment 1 question 2 with answer :

प्रोजेक्ट विधि की विशेषताएं लिखिए | इस विधि के लाभ एवं सीमाए क्या है ?
प्रश्न का उत्तर जानने के लिए पूरा पोस्ट पढ़िए |

पिछले पोस्ट में हमने असाइनमेंट 501  का सभी प्रश्नों का उत्तर पब्लिश कर दिया है |
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जितने भी प्रश्न का उत्तर लिखा हूँ |
अपने थिंकिंग और ज्ञान के द्वारा लिखा हूँ | हो सकता है |

Deled course 502 assignment

इस प्रश्न के प्रति आपका सोंच अलग हो | इसीलिए आप अपने अनुसार उत्तर में बदलाव कर सकते है |
 इस लेख में Deled course 502 assignment 1 question 2 का answer पुप्लिश कर    रहा हूँ |

⇒ Deled course 502 assignment 1 question 2 with answer

Deled course 502 assignment 1

Q. 2 ) प्रोजेक्ट विधि की विशेषताएं लिखिए |
इस विधि के लाभ एवं सीमाएं क्या है ? 

 

हमने कई बार विद्यालय और विद्यालय के बाहर प्रोजेक्ट तैयार  किया है | और एक अध्यापक  होने के नाते विद्यालय में बच्चो से प्रोजेक्ट बनवाया है | किसी भी क्षेत्र में प्रोजेक्ट तैयार किया जा सकता है | अनेक लोग ने प्रोजेक्ट के विषय में अपने मत के अनुसार परिभाषित किया है | john afford stevension के अनुसार : एक प्रोजेक्ट एक समस्यात्मक कार्य है | जिसे उसे वास्तविक परस्थितियो में पूर्ण किया जाता है | Baford इसे कुछ इस तरह से परिभाषित करते है | एक प्रोजेक्ट एक वास्तविक जीवन का एक टुकड़ा होता है | जिसे विद्यालय में लाया जाता है | जबकि Dr. william head kilpatrik इसे परिभाषित करते है | – एक प्रोजेक्ट उदेश्यपरक क्रिया कलाप है जिसे एक सामाजिक वातावरण में सम्पूर्ण ह्रदय से पूरा किया जाता है |

प्रोजेक्ट विधि की विशेषताएं 

प्रोजेक्ट विधि की निम्नलिखित विशेषताएं है |
1.  समस्यात्मक : – प्रत्येक प्रोजेक्ट किसी विधार्थी – विधार्थियों द्वारा अनुभूत एक समस्या का संधान प्राप्त करने का लक्ष रखता है | समस्या के रूप में जागरूक होना प्रोजेक्ट निर्माण को प्रारंभ करता है |
2.  उद्देश्य :- किसी प्रोजेक्ट की सफलता इस बात पर निर्भर करता है | की विधार्थियों ने इस उदेश्य को कितना समझा है | विधार्थियों द्वारा इस प्रोजेक्ट पूरा करने का उद्देश्य उसके वास्तविक जीवन की परस्थितियो से अतरंग रूप से जुड़े होते है | और उनके मन की कुछ इच्छाओ को पूरा करता है |
3.  वास्तविकता :- प्रवभाकारी अधिगम के लिए वास्तविक जीवन के क्रियाकलापों की रचना करना आवश्यक है |
4.  क्रियाकलाप :- उद्देश्य को परिभाषित करने के पश्चात् अब आपका कर्तब्य है की आप विधि गम वातावरण की रचना करे | विधार्थी स्व योजना बनाकर , सामूहिक चर्चा के द्वारा और सामूहिक क्रियाकलाप के द्वारा सीखना प्रारम्भ करता है |
5.  स्वतंत्रता :- प्रोजेक्ट विधि में अधिगम स्वाभाविक रूप से होता है | अत : विधार्थी स्वतंत्र रूप से क्रियाकलाप में भाग लेता है |
6.  समग्रता :- प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन के समस्याओ पर आधारित होता है | प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए वास्तविक अनुभव चाहिए | और कोई भी वास्तविक अनुभव केवल एक ही विषय को ज्ञान को शामिल नही करता है | वरना एक ही विषयो के ज्ञान को जोड़कर किसी प्रोजेक्ट को सफलता पूर्वक पूरा किया जा सकता है |
7.  प्रजातांत्रिक मूल्य :- प्रोजेक्ट में कार्य करते समय समूह में कार्य करते समय विधार्थियों को एक दुसरे की सहायता करना चाहिए | आदर करना चाहिए | विचारो को आपस में बतना चाहिए | तथा जिम्मेदारी लेना चाहिए | इस प्रकार के विशेषताओ को पोषण करने से विधार्थियों में प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकाश होता है |

प्रोजेक्ट विधि के लाभ

1.  प्रोजेक्ट विधि सक्रिय अधिगम के सिधांत पर आधारित है | इसमे विधार्थी पूर्ण रूप से सलगन हो जाते है | जिससे उनके ज्ञान समझ और कौशलो को बढ़ता है | जिसका उपयोग वे वास्तविक जीवन के परिस्थितियों में उपयोग कर सकते है | और उनके समग्र व्यक्तित्व विकाश में सहायक होते है |
2.  प्रोजेक्ट के आयोजन में बच्चे को पूर्ण स्वतंत्रता होती है | इससे उनके आत्मविश्वास बढ़ता है | और विधार्थी के बिच जिम्मेदारी का भाव का विकाश होता है |
3.  विधार्थी उन कार्यो के साथ परिचित होते है | जिसे शायद वे भविष्य में करे | इस प्रकार प्रोजेक्ट विधि विधार्थियों को उनके भविष्य के जीवन के लिए तैयार करता है |
4.  प्रोजेक्ट क्रिया कलापों के लिए रूचि और प्रेणना स्वत : उत्पन्न होते है | और कोई बाहय बल या अनुनय – विनय की आवश्यकता नही पड़ती है |
5.  प्रोजेक्ट को पूर्ण होने पर प्रोजेक्ट व्यक्तिगत रूप से विधार्थी को उपलब्धि का अहसास दिलाता है | इससे विधार्थी आगे सिखने के लिए उधत होते है |

प्रोजेक्ट की तिन सीमाए इस प्रकार है | 

1.  अध्ययन सामग्री को पूरा करने में कठिनाई होना : – इसमे शिक्षण करते समय निश्चित समय चक्र का अनुसरण बिलकुल भी नही किया जाता है | इसमे शिक्षा करम निश्चित होते है | इसमे सभी विषयो का पाठ्यक्रम समय पर समाप्त किया नही जा सकता है | इसीलिए विद्यालय का कार्य अस्त – व्यस्त हो जाता है |
2.  बराबर पढाई नही होना :- इसमे कुछ निपूर्ण बच्चे सारा काम खुद करना चाहते है | जिससे कुछ बच्चा इस विधि में पिछड़ जाते है | यह बात भी सही है सभी विद्यालय में एक जैसा पढाई नही होता है | सभी विद्यालय से यह उम्मीद नही होता है की वे अपना कार्य अच्चा से कर सके |
3.  सामान सामग्री की व्यवस्था करना :- हमे सामाजिक क्रम में विषय सामग्री को व्यवस्थित करना जरुरी है | इसीलिए विद्यालय में कई बातो पर उलझने तक का सामना करना पड़ सकता है | इससे उसके मन में सामाजिक अध्ययन के लिए रूचि पैदा  हो सकता है |

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