अव्यय और उसके प्रकारों पर प्रकाश डालिए ?

Last Updated on 5 महीना by Abhishek Kumar

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अव्यय और उसके प्रकारों पर प्रकाश डालिए ?

जिन शब्दों के रूप में सदा एक से बने रहते हैं अर्थात जिनमें लिंग वचन और कारक से कोई विकार नहीं होता,  उन्हें अव्यय  कहते हैं |  वस्तुत:  हर स्थिति में अव्यय  का रूप  वैसे का वैसे बना रहता है | 

उदाहरण के लिए,  गोविंद तेज दौड़ता है |  शीला तेज दौड़ती है | तुम तेज दौड़ते हो|  इतने तेज शब्द तीनों अवस्थाओं में एक समान है   अत: अव्यय  है | 

अव्यय  के भेद 

 क्रियाविशेषण अव्यय ,  संबंधबोधक अव्यय ,  समुच्चयबोधक अव्यय   विस्मयादिबोधक अव्यय | 

 क्रिया विशेषण अव्यय 

 अव्यय  अथवा अविकारी शब्दों में क्रिया विशेषण अधिक महत्वपूर्ण है|  क्रिया विशेषण का अर्थ है क्रिया की विशेषता बताने वाला | 

उदाहरण के लिए – घोड़ा तेज दौड़ता है। तुम दूर मत जाना।

क्रिया-विशेषण क्रिया के कर्ता, कर्म अथवा पूरक से संबंध रखने वाली विशेषताएँ नहीं बतलाता, बल्कि वह क्रिया के समय, स्थांन, प्रयोजन, कारण, विधि और परिणाम संबंधी विशेषताएँ प्रकट करता है।

परिभाषा – जो अव्यय क्रिया की विशेषता प्रकट करता है, उसे क्रिया-विशेषण कहते हैं।

उदाहरण के लिए –

अधिक मत बोलो।

कम खाओ।

ऊपर के वाक्यों में अधिक और कम क्रिया-विशेषण हैं, जो बोलना और खाना क्रियाओं की बिशेषता बता रहें है |

क्रिया-विशेषण के कार्य –

  • यह क्रिया की विशेषता बतलाता है।
  • क्रिया के होने का ढंग बतलाता है |
  • क्रिया के होने की निश्चितता तथा अनिश्चितता का.बोध कराता है।
  • क्रिया के घटित होने की स्थिति आदि बतलाता है।
  • क्रिया के होने में निषेध तथा स्वीकृति का बोध कराता है।

संयुक्‍त क्रिया-विशेषण – संज्ञाओं, क्रिया-विशेषणों एवं अनुकरणमूलक शब्दों की पुनरुक्ति; संज्ञाओं के और भिन्न क्रिया-विशेषणों के मेल से, अव्यय के प्रयोग से तथा क्रिया-विशेषणों की पुनरुक्ति के बीच “’न’ आने से बने क्रिया-विशेषण को संयुक्त क्रिया- विशेषण कहते हैं; जैसे – वह घर-घर गया। उसने दिन-रात मेहनत की। तुम जहाँ-तहाँ मत जाओ। वह कहीं-न-कहीं गया होगा।

क्रिया-विशेषण के भेद – क्रिया-विशेषण के भेद मुख्यतः तीन आधारों पर होते हैं, जो निम्नांकित हैं –

अर्थ की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के भेद।

प्रयोग की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के भेद।

रूप की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के भेद।

अर्थ की दृष्टि से ,क्रिया-विशेषण के भेद

अर्थ की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के चार भेद हैं – स्थानवाचक, कालवाचक, रीतिवाचक,

परिमाणवाचक |

स्थानवाचक – इससे स्थिति और दशा का बोध होता है। इसके दो उपभेद हैं –

दिशाबोधक – दाहिने, बाएँ आर-पार, हर तरफ, किधर, जिधर, इधर, उधर, दूर आदि |

स्थितिबोधक – सर्वत्र, पास, निकट, समीप, सामने, साथ, भीतर, बाहर, नीचे ऊपर, आगे, पीछे, यहाँ, जहाँ, तहाँ आदि |

कालवाचक – इससे समय का बोध होता है। इसके तीन उपभेद हैं –

  1. समयबोधक – आज, कल, परसों, नरसों, कब, तब, जब, अब, सवेरे, पीछे, पहले, कभी, तभी, फिर आदि।
  2. अवधिबोधक – अब तक, कभी-न-कभी, दिनभर, सतत्‌, आजकल, नित्य, सर्वदा, लगातार आदि।
  3. पौनःपुन्य बोधक – बार-बार, प्रतिदिन, हर-रोज, निरंतर, लगातार, बहुधा, कई बार, हर-घड़ी।

रीतिवाचक – इससे रीति का बोध होता है। इसके सात उपभेद हैं –

  1. कारणबोधक – इसलिए, अतएव, क्‍यों करके आदि।
  2. निषेघबोधक – नहीं, मत, न आदि।
  3. स्वीकारबोधक – हां, ठीक, अच्छा, जी, अवश्य, तो ही आदि।
  4. प्रकारबोधक – अचानक, यों, योंही, अनायास, सहसा, धीरे, सहज, साक्षात, ध्यानपूर्वक, संदेह, जैसे, तैसे, मानो, परस्पर, मन से, हौले आदि ।
  5. निश्चयबोधक – यथार्थत:, वस्तुतः, निःसंदेह, बेशक, अवश्य, अलबत्ता, जरूर, सचमुच, मुख्य, आदि।
  6. अनिश्चयबोधक – यथासंभव, कदाचित, शायद, यथासाध्य आदि।
  7. प्रश्नबोधक – कहाँ, क्‍यों, कब, क्या आदि।

परिमाणवाचक – इससे परिमाण का बोध होता है। इसके पाँच उपभेद हैं –

पर्याप्तिबोधक – इससे परिमाण का बोध होता है।

तुलनाबोधक — और, अधिक, कम, कितना, जितना, इतना आदि।

क्रमबोधक – क्रम-क्रम से, यथा-क्रम, थोड़ा, तिल-तिल, एक-एक करके आदि।

प्रयोग की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के भेद

साधारण क्रिया-विशेषण – वाक्य में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त, होने वाले क्रिया-विशेषण को साधारण क्रिया-विशेषण कहते हैं। जैसे – वहाँ, कब, जल्दी |

संयोजक क्रिया-विशेषण — उपवाक्य से संबंधित क्रिया-विशेषण को संयोजक क्रिया- विशेषण कहते हैं। जैसे – जहाँ आप पढ़ेंगे, वहाँ मैं भी पढूँगा, (जहाँ-वहाँ)

अनुबद्ध क्रिया-विशेषण – किसी शब्द के साथ अवधारणा के हा प्रयुक्त होने वाले क्रिया-विशेषण को, अनुबरद्ध क्रिया-विशेषण कहते हैं| जैसे – तो, भी, भर।

रूप की दृष्टि से क्रिया-विशेषण

रूप की दृष्टि से,क्रिया-विशेषण के तीन भेद हैं –

मूल क्रिया-विशेषण – बिना किसी अन्य के मेल में आए स्वतंत्र रूप वाले क्रिया-विशेषण को मूल क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे – नहीं, दूर, फिर, ठीक, अचानक।

यौगिक क्रिया-विशेषण – शब्दों में प्रत्यय जोड़कर बने क्रिया-विशेषण को यौगिक क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे – दिल से, यहाँ पर, वहाँ पर, मन से।

स्थानीय क्रिया-विशेषण – ऐसे क्रिया-विशेषण, जो बिना रूपांतर के किसी विशेष स्थान में आते हैं, स्थानीय क्रिया-विशेषण कहलाते हैं; जैसे – राक्षस मुझे क्या खाएंगे? चोर पकड़ा हुआ आया। लड़का उठकर भागा।

संबंधबोधक अव्यय

वे अव्यय, जिससे संज्ञा अथवा सर्वनाम का संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों से जाना जाता है, संवंधवोधक अव्यय कहलाते हैं।

उदाहरण के लिए; अनुकूल, अनुसार, आसपास, आगे, ओर आदि।

संबंधबोधक अव्यय के कार्य –

संज्ञा के बाद उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ दिखाना; जैसे – रमा रात-भर जागती रही |,(सैंब॑ ‘भर’ संज्ञा ‘रात’ का संबंध इस वाक्य के

अन्य शब्दों से बताता है)

संबंधबोधक द्वारा समय, स्थान तथा तुलना का बोध कराना; जैसे –

गरिमा योगेश के बाद घर पहुँची। (समय का बोध)

विवेक मनीष की अपेक्षा तेज है। (तुलना)

संबंधबोधक अव्यय के मेद –

संबंधवोधक अव्यय के भेद मुख्यतः तीन आधारों पर होते हैं, जो निम्नांकित हैं – प्रयोग के आधार: प्र अर्थ के आधार पर, व्युत्पति के आधार पर।

प्रयोग के आधार पर संबंधवोधक अव्यय के भेद

संबद्ध संबंधवोघक अव्यय – ये संज्ञाओं के परसर्गों के बाद आता है। जैसे – ‘के’ विभक्ति के बाद; जैसे – व्यायाम के पहले।

किताब के बिना (अव्यय ‘पहले’ और ‘बिना)

अनुबद्ध संबंधवोधक अव्यय – ये संज्ञाओं के विकृत रूप के बाद आता है, जैसे – कई दिनों तक। प्याले-भर।

(तक’ तथा ‘भर’ अव्यय। ‘दिन’ और ‘प्याला’ के विकृत रूप के बाद)

अर्थ के आधार पर संबंधबोधक अव्यय के भेद

अर्थ की दृष्टि से संबंधवोधक के तेरह भेद हैं। इन भेदों के नाम और उदाहरण दिए जा रहे हैं –

  1. कालवाचक – पूर्व, पहले, बाद, आगे, पीछे आदि।
  2. स्थानवाचक – बाहर, भीतर, नीचे, पीछे, आदि।
  3. सादृश्यवाचक – समान, तरह, भाँति, योग्य, जैसा आदि।
  4. तुलनावाचक – अपेक्षा, बनिस्बत, सामने आदि।
  5. दिशावाचक — तरफ, पार, ओर, आसपास आदि।
  6. साधनवाचक – सहारे, द्वारा, मार्फत आदि।
  7. हेतुवाचक – निमित्त, वास्ते, लिए, हेतु आदि।
  8. विषयवाचक – लेखे, बाबत, भरोसे, निस्बत आदि।
  9. व्यतिरेकवाचक – बिना, अलावा, सिवा, अतिरिक्त आदि।
  10. विनिमयवाचक – जगह, बदल, पलट, एवज आदि।
  11. विरोधवाचक – विरुद्ध, विपरीत, उलटे, खिलाफ आदि।
  12. सहचरवाचक – संग, सहित, साथ, समेत आदि।
  13. संग्रहवाचक – मात्र, पर्यत, भर, तक आदि।

व्युत्पति के आधार पर संबंधबोधक अव्यय के भेद

व्युत्पति की दृष्टि से संबंधवोधक अव्यय के दो भेद – मूल संबंधवोधक, यौगिक संबंधबोधक |

मूल संबंधबोधक – बिना, पर्यत, पूर्वक आदि।

यौगिक संबंधबोधक –

संज्ञा से – अपेक्षा, पलटे, लेखे, मारफत आदि ।

विशेषण से – समान, योग्य, ऐसा, उलटा, तुल्य आदि।

क्रिया से – लिए, मारे, चलते, कर, जाने आदि।

क्रिया-विशेषण से – पीछे, परे, पास आदि ।

समुच्चयबोधक अव्यय

दो वाक्यों अथवा शब्दों को मिलाने वाले अव्यय को समुच्चयबोधक अंव्यय कहते हैं।

उदाहरण के लिए – हंस पक्षी दूध और पानी को अलग कर देता है| इसमें और शब्द समुच्चयबोधक है, क्योंकि यह दूध और पानी शब्दों को जोड़ रहा है।

समुच्चयबोधक अव्यय के कार्य

दो पदों अथवा सरल वाक्यों को जोड़ना |

2. दो या दो से अधिक शब्दों अथवा वाक्यों में से किसी एक को ग्रहण करना अथवा  त्यागना अथवा सबको त्यागना।

अगला वाक्य पिछले का अर्थ परिणाम है अथवा पिछला अगले का |

समुच्चयबोधक अव्यय के भेद

संयोजक – जो शब्दों अथवा वाक्यों को जोड़ते है; जैसे – संतोष, हरीश और सोहन और, तथा, एवं आदि संयोजक हैं।

विभाजक – जो शब्दों अथवा वाक्यों को जोड़ते हुए भी उनके अर्थों को एक-दूसरे से अलग करते हैं: जैसे- ईश अथवा ईशा उत्तर दें।

अथवा, या, वा, पर, परंतु, लेकिन, वरन्‌, बल्कि, नहीं, चाहे आदि विभाजक हैं|

विस्मयादिबोधक अव्यय

हर्श, शोक, विस्मय आदि भावों को प्रकट करने वाले अव्यय को विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं।

उदाहरण के लिए; अरे! क्या तुमने नहीं सुना? इसमें अरे विस्मय प्रकट करता है, अतः विस्मयादिबोधक अव्यय है। वाह, अरे, घिक, ओह, छि:, हाय-हाय आदि विस्मयादिबोधक अव्यय हैं।

विस्मयादिबोघक अव्यय के कार्य-

  • हर्ष सूचित करना
  • शोक सूचित करना
  • आश्चर्य सूचित करना
  • तिरस्कार एवं घृणा सूचित करना
  • स्वीकार एवं संबोधन सूचित करना।

विस्मयादिबोघक अव्यय के भेद – इसके मुख्यतः सात भेद होते हैं –

  1. हर्षबोघक – अहा!, वाह-वाह!, बहुत खूब, शाबाश! आदि।
  2. शोकबोघक – हाय!, ओह!, आह!, आदि।
  3. आश्चर्यबोधक – क्या!, ऐं!, हैं’, आदि।
  4. अनुमोदनबोघक – अच्छा! हॉ-हाँ’, ठीक! आदि।
  5. तिरस्कारबोधक – दुर!, छिक!, छि:|, आदि।
  6. स्वीकारबोघक – जी!, जी हाँ!, हाँ।, आदि।
  7. संबोघनबोघक – अरे!, रे!, अजी!, है! आदि।
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